तेनालीराम और मूर्ख दरबारी की चुनौती
तेनालीराम और मूर्ख दरबारी की चुनौती
विजयनगर के दरबार में एक नया दरबारी नियुक्त हुआ था, जो अपनी बुद्धिमत्ता के बड़े-बड़े दावे करता था। उसका नाम था कामदेव भट्टाचार्य। उसने दरबार में आते ही यह घोषणा कर दी कि वह पूरे राज्य का सबसे बड़ा विद्वान है और तेनालीराम उसकी बुद्धि के सामने कुछ नहीं।
राजा कृष्णदेव राय को यह सुनकर अचंभा हुआ और उन्होंने कामदेव को तेनालीराम के साथ एक बुद्धि-परीक्षा में भाग लेने का आदेश दिया।
चुनौती की शर्त
कामदेव ने एक विचित्र शर्त रखी—“मैं तेनालीराम को एक ऐसा सवाल पूछूंगा जिसका कोई उत्तर नहीं है। अगर तेनालीराम जवाब नहीं दे पाए, तो उन्हें दरबार छोड़ना होगा।”
राजा ने तेनालीराम की ओर देखा। वह मुस्कराते हुए बोले, “महाराज, शर्त मंजूर है। चलिए देख लेते हैं कितनी गहरी है इनकी सोच।”
मूर्खतापूर्ण सवाल
अगले दिन कामदेव दरबार में आया और बोला, “तेनालीराम! बताओ, दुनिया में ऐसी कौन-सी चीज़ है जो सुबह उड़ती है, दोपहर में रोती है और शाम को मिट्टी में घुस जाती है?”
सवाल सुनते ही दरबार में सन्नाटा छा गया। सबको लगा कि तेनालीराम अब फंस गए।
तेनालीराम ने मुस्करा कर जवाब दिया:
“यह कोई असली सवाल नहीं, बल्कि एक बेतुका पहेली है जो बुद्धि की नहीं, कल्पना की परीक्षा लेती है। लेकिन फिर भी मैं जवाब दूंगा—
‘यह एक आदमी का जीवन है।
सुबह यानी बचपन में वह सपनों की उड़ान भरता है,
दोपहर यानी युवावस्था में समस्याओं से जूझता है और आँसू बहाता है,
शाम यानी बुढ़ापे में वह मिट्टी में मिल जाता है।’”
यह उत्तर सुनते ही पूरी सभा में तालियाँ गूंजने लगीं। कामदेव का सिर शर्म से झुक गया। राजा ने तेनालीराम को एक भारी पुरस्कार दिया और कामदेव को उनकी घमंड से भरी बुद्धि के लिए फटकार लगाई।
सीख क्या है?
सच्चा ज्ञान सिर्फ ज्ञान का दिखावा नहीं होता, बल्कि उसका व्यावहारिक उपयोग मायने रखता है।
अभिमानी व्यक्ति अक्सर अपनी ही बातों में उलझ जाता है।
विनम्रता और चतुराई मिल जाएं तो हर समस्या हल हो सकती है।

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